भारत मै कोरोना बाद लंपी का खेल
दूध के भाव निरंतर बढ़ते जा रहें है, देखते ही देखते पिछले 2 सालों में करीब 12-14 रूपये लीटर की बढ़ोतरी हो चुकी है.
यदि किसी पशुपालक से जा कर पूछा जाए औऱ ईमानदारी से उसका श्रम व लागत के मुकाबले यदि दूध का दाम देखें तो उसको बहुत कम मूल्य दिया जा रहा है.
अमूल समेत अन्य दूध dairy दूध का दाम 50 से 65 रुपया लीटर कर चुकी है, लेकिन ये पशुपालक को दूध का सिर्फ 35-40 रुपया ही देते है वह भी fat % के आधार पर.
शहरों में कई दुकानों पर खुला दूध भी इसी भाव बिकता है वो भी आस पास के पशुपालको से दूध 30-40 रुपया के भाव में लाते है औऱ खुदरा में ग्राहक को 50-65 रुपया दूध अलग अलग क़्वालिटी के नाम पर मिल रहा है.
लेकिन पशुपालक को सिर्फ 30-40 रुपया लीटर ही मिलता है, उनमें भी वही ये लागत वहन कर सकते है जिनको चारा अपने स्वयं के खेत से मिलता है,औऱ परिवार के लोग इस क़ीमत में अपने स्वयं की मजदूरी तक नहीं निकाल पाते
उस पर कोढ में खाज यह है कि गाय का परिवहन करना खतरे से खाली नहीं है, कभी भी रास्ते में ठुकाई पिटाई की संभावना बन सकती है.
लम्पी वायरस से पिछले दिनों हजारों गायें बेमौत मरी है, पशुपालक कर्ज के बोझ तले सदैव दबा ही रहता है.
Note..
अनाज सब्जी दूध ये तीनों आइटम खेती किसानी व पशुपालन से जुड़े हुए है, एक तरफ किसानों को उचित दाम नहीं मिल रहा औऱ दूसरी तरफ हाय हाय भाव बढ़ गए… ये दोनों विपरीत कथन बोलना उचित नहीं है
बिचौलियो को उनकी क़ीमत मिले कोई आपत्ति नहीं है लेकिन उत्पादनकर्ता को भी उचित मूल्य प्राप्त होना चाहिए..
मेरे हिसाब से दूध का दाम ज़ब तक पशुपालक को 50/- लीटर नहीं मिलता तब तक वो फायदे में नहीं आ सकता, पशुपालक को 50/- देने के बाद dairy वाले उसमें अपनी लागत जोड़ कर दूध का बाजार भाव तय
सिख न्यूज इंटरनेशनल