#गुरु_साहिब_के _नक्शे… part -3

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सिख न्यूज इंटरनेशनल

गुरु साहिब दंशम पातशाह गुरु गोबिन्द सिघँ जी ने अपनी कौम,पंथ का लीडर कैसा हो वह बहुत स्पष्टता से समझाया और जीवन मे खुद जी कर दिखाया. गुरु साहिब कौम को एक युनीफार्म देने की सोची और वैसाखी के जोड मेले को खालसा सृजन दिवस मे बदल दिया और इसकी शुरुआत एक शर्त के रुप मे सिर मागं कर ली. सिर का मतलब यहा जान लेना नही बल्की उनका समर्पण भाव देखना था.. देखना था कि आम सिख उनके प्रति कितना सम्रपित है. गुरु नानक साहिब ने जो बीज बोया था वह आज कहा तक पहुचा उन्है गुरुसाहिब के आदेश और खुशी के आगे अपने जीवन का कया मुल्य है. यह समर्पण पाचँवे और नवै रुप मे गुरु अरजन साहिब और गुरु तेगबहादर साहिब के रुप मे अपने आप को शहीदी के लिऐ पेश कर दिखाया.. धर्म के लिऐ अपनी शहीदी जाम पीना हँसते हुऐ समर्पण भाव ही तो था…. दशंम पातशाह जी ने यही पंरम्परा को निभाया और आम सिख और अपने साहिबजादो मे फर्क ना रखते हुऐ एक समानता का अनोखा उदाहरण पेश किया वक्त आने पर उन्होने अपने साहिबजादो को भी खुद अपने हाथो से तैयार कर बाकी आम सिक्खो के साथ जंगे मैदान मे शौर्य और वीरता का प्रदर्शन करते हुऐ शहीदी जाम पीने को भेजा. यही पंरम्परा को अपनाते हुऐ बाद मे सिख बहादुर जरनैलो ने अपने और परिवार को पहले हर कुर्बानी के लिऐ सबसे पहले समर्पित और तैयार रखा. बंदा सिघँ बहादुर जी ने अपने पुत्र अजय सिघँ को अपनी आखो के सामने शहीद होते देखा पर अडीग रहै. 1716 से 1733 के समय मे लगातार सिखी पर हमले होते रहै और सिखो के सिरो का मुल्य लगता रहा. परन्तु सिख जरनैलो और सरदारो के किरदार का कद इतना ऊचा था कि आखिर जकरीया खान को भी हार मानते हुऐ जंग की बजाऐ सिखो को सरकार मे शामिल करने के लिऐ भाई सुबेग सिघँ के हाथो नवाबी की पेशकश भेजनी पडी… सिख जत्थेदारो ने उसकी नवाबी को ठोकर मारते हुऐ फैसले का अधिकार पाचँ प्यारो पर छौड दिया… तब पाचँ सिघो ने सलाह मशवरा कर एक समर्पित काबिल सिख सेवादार सरदार कपूर सिघँ को नवाबी ग्रहण करने का हुक्म दिया. सरदार कपूर सिघँ ने खालसे का हुक्म मान कर नवाबी ली ना की जकरिया खान के आदेश से. यह किरदार था उस समय के सिख जत्थेदारो का कि वह नवाबीयो को भी ठोकर पर रखते और गुरु प्रति समर्पण और फर्जो को ऊपर रखते थे. महाराजा रणजीत सिघँ को भी सिख पंथ समाज का नेतृत्व करने के लिऐ तैयार करने के लिऐ उनके पिता महा सिघँ जी ने उनकी यह योग्यता मैदान मे उतार कर ही ताराशी. आज हम कहा है और हमारे लीडरो यह गुण है की नही देखने की जरुरत है. हमारे पंथक लीडरो परिवार पहले और पंथ बाद मे आता है. पिछले पचासँ सालो मे यह परिवारवाद बढता ही गया है. पंजाब 90 के दश्क के काले दौर मे भी पुरा पंजाब जल रहा था और तकरीबन हर परिवार इस आग से प्रभावित था… परन्तु हमारे पंथक लीडरो के परिवार खुशहाल और सुरक्षित फल-फूल रहै थे. विदेशो मे पंढ रहै थे बिजनैस कर रहै थे. आज भी किसी भी स्वयसंम्भु या स्थापित लीडर या जत्थेदार को देख ले उसका परिवार एक अलग राह पर चलता दिखाई देगा. ना खुद का किरदार सिखी उसुलो मुताबिक और परिवार तो कोसो दुर दिखाई देगा. किसी भी आन्दोलन लहर मोर्चे मे खुद परिवार समेत कभी हाजिर नही होगा . खुद के बच्चो को विदेशो मे स्थापित कर या बिजनैस मे लगा कौम के बच्चो को सघर्ष करने का आह्वान करेगा. परिवार और खुद को पहले सुरक्षित करते हुऐ आम लोगो को बली का बकरा बनाते हुऐ राजनीति करेगा. जो परिवार और खुद को कौम, पंथ से अलग और आगे रखे वह कैसे सच्चा लीडर हो सकता है. यह तो गुरु साहिब ने खुद बताया है. भुलचुकमाफ #rਵਿੰਦਰਸਿੰਘ दी वाल तो

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