भगत रवि दास जी का संस्मरण
कहा जाता है कि एक महिला बाबा रविदास जी के पास आई और कहने लगी, ‘भगवान मुझे भी दे दो’। बाबा जी मुस्कुराए, लेकिन वह अड़ी रही, कह रही थी कि भगवान को लेना है। बाबा जी कहते हैं मैं कल दूध लाया। अगले दिन वह दूध से भरा एक बर्तन ले आई। बाबा जी ने उसे यह तेल बाल्टी में डालने को कहा। चमड़े को जग में भिगोकर रखा गया था। बीबी ने देखा और कहा, ‘लेकिन?’ “भैया चमड़ी निकाल कर उसमें दूध डाल दो”। ‘लेकिन यह बहुत गंदा बर्तन है, दूध खराब हो गया है, कोई साफ बर्तन नहीं है’ महिला ने कहा। “अपने अंदर देखो, मैडम, क्या आपका बर्तन इस जाल से साफ है, जिसमें आप भगवान को खोजने के लिए घूमती हैं” बाबाजी मुस्कुरा रहे थे। …… सच में हमने अपने साफ सुथरे बर्तनों का क्या कर दिया…. सतगुरु की रहमत हम पर बर्तन धोने के लिए आ जाए…..