प्रिंट के प्रधान संपादक शेखर गुप्ता और उनकी सिखो के प्रति नफरत उनके लेखों से नजर आती है

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पिछले दिनों मैं जब पंजाब मैं अमृतपाल सिंह का नाम उभरा तो उसने नशे के संसार को नकेल डालने के लिए नौजवानों को सिख धर्म को रिवायत अमृत छक कर पूरी तरह गुरु ग्रंथ साहिब के चरणों मैं अपना सब कुछ न्यौछावर करने का संकल्प लिया तब से राजनीतिक  पार्टियों को माहोल रास नहीं आ रहा कल द प्रिंट के चीफ एडिटर शेखर गुप्ता का लेख दैनिक भास्कर मैं पढ़ा समझ नही आता की सिखो की बुरी बातो को बढ़ा चढ़ा करना और सिखो से किस बात ली वैमनस्य रखते है उन्हों से पूछना चाहता हु की 1978 मैं  निरंकारियों की शह पर 13 निहत्थे सिख शहीद कर दिए जब को निरंकारी हथियारों से लैस थे जिसकी खबर प्रकाश सिंह बादल को और उस समय के डी जी को पता थीं अमृतसर सर्किट हाउस मैं बैठे थे किस ने दी बता सकते है शायद नही बोलेंगे 1978से 1983तक जो खालिस्तान कमांडो फोर्स जो हिंदू भाईयो व सिखो को बसों से उतार कर एम मार रहे थे  किसने  इतनी हिम्मत दी इसकी जांच पड़ताल करी ,गहराई मैं गए शायद नही

पंजाब 30 साल से नशे से जूझ रहा है आज से 28 साल पहले मैने एक डॉक्यूमेंट्री गूगल पर देखी जिसका नाम(द गल्ट अनटोल्ड स्टोरी ऑफ पंजाब) जिसमे मिलिट्री के ब्रिगेडियर , मुंबई इंडस्ट्री ,स्पोर्ट्स मैन,शामिल थे जब एक साधारण आदमी को पता लग सकता है की ड्रग्स का धंधा कहा से और कोन कोन शामिल है तो स्टेट गवर्नमेंट और केंद्र को कैसे पता नही होगा पर एक कौम जो सारी जिंदगी देश कौम या धर्म को बचाने के लिए सवस्त्र कुर्बान कर बैठी उनके नवजवान नशे मैं झोंक दिए गए सुहानुभूति तो दूर एक लवज्ज नही बोला कोई ये न्याय है क्या देश के नागरिको के साथ या अमृतपाल सिंह को ये पूछना चाहिए की सिख इस देश के नागरिक भी है

शेखर गुप्ता को मालूम है कि आनंदपुर प्रस्ताव है क्या पहले जाने फिर कोई लेख या किसी कौम के बारे मैं लिखे

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