गुरु हरगोबिंद साहिब और भाई भेखरी जी
राजी होइ रजाए विच.
गुरसिखों का धर्म
एक बार एक सिख ने छठे पतिशाह श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी से पूछा, “क्या आप एक सिख गुरुमुख को देखना चाहेंगे जो सच्चे पतिशाह रजा में रहता है?” तो गुरु साहिब ने कहा, “गुजरात जाओ, भाई भेखरी है।” जग्यासु गुजरात भाई पहुंचे। सिख गुरु साहिब जी के शब्दों के अनुसार भिखारी। भाई भेखरी जी के घर में बेटे की शादी की तैयारी चल रही है। तरह-तरह के पकवानों और कपड़ों की साज-सज्जा चल रही थी। एक कोठरी के अंदर लकड़ी काटकर मृतक के दाह संस्कार के लिए लकड़ी का बिबनू बनाया जाता था। मेहमान सिक्ख हैरान हो जाता है और भाई भेखरी जी से इस बारे में पूछता है तो भाई जी उससे कहते हैं कि इस बारे में कल बता देंगे। भाई भेखरी जी के बेटे की हुई शादी, नवविवाहित दुल्हन को खुशियों से घर लाते हैं। भाई भेखरी जी के नवविवाहित पुत्र की घर जाते समय रास्ते में अचानक लगने से मृत्यु हो जाती है। जब उसी लकड़ी के बिबनू पर उनका अंतिम संस्कार किया गया, तो मेहमान आए और भाई भेखरी से पूछा, “अगर आपको पहले से पता था कि आपका बेटा मरने वाला है, तो आपने उससे शादी क्यों की?” भाई भेखरी जी कहने लगे, “मेरे बेटे का पिछला जन्म था और एक दिन एक वेश्या ने उसकी साधना में विघ्न डाल दिया। दोनों की मौत हो गई। तो उन्होंने मेरे घर जन्म लिया, साध-संगति को प्राप्त किया और भगवान-नाम-रत्न-पदार्थ को प्राप्त किया। बहू को ब्याहने वाली तो पिछले जन्म की वेश्या है, पर अब यहीं रहकर गुरु नानक के दरबार के गुरसिखों की सेवा करेगी, वचन सुन और मोक्ष पा लेगी।” ”यदि तुम ऐसे होते तो महत्त्वाकांक्षी, तुमने गुरु से पुत्र क्यों नहीं माँगा?” भाई भेखरी जी कहने लगे, “गुरु से झूठी बात माँगने की क्या बात है, गुरु की इच्छा से संतुष्ट होना सिक्खों का धर्म है। “
-तलविंदर सिंह बुट्टर